कुछ हम पास है, कुछ तुम क्यों नहीँ
रात पूरी बाकी है, फिर भी बात क्यों नहीँ
मचल रहा दिल क्यों हैं, तुम्हारी याद में
तुम भी बैठी वहाँ बेताब क्यों नही
कितनी बड़ी ईमारत दिल की
चढ़ कर छत पर देखलू क्या तुम्हें
खिड़की कोई खोल कर
झाँक लूँ ज़रा सा क्या तुम्हे
या की यही नीचे से
गुनगना लूँ कोई ग़ज़ल
या फिर न सोच कर
मै पूरे रास्ते भर
यूँ ही ख़ामख़ा चलू
तुम भी टिक टिक काटों की तरह
नज़रे क्यों घुमाती नहीँ
क्यों मेरे सहारे आज कल हस्ति गुनगुनाती नहीँ
क्यों हम आज साथ साथ नहीँ
हम तुम आस पास मेरे , मगर हम साथ क्यों नही
कुछ हम पास है, कुछ तुम क्यों नहीँ
कुछ हम दूर है, कुछ तुम पास क्यों नहीं
हम भी फ़ालतू ही शायरी किया करते हैं
इनका क्या असर पड़े हश्र पर तुम्हारे
क्या मतलब इन लब्ज़ो का
व्यर्थ ही बखान किया करते है ये
इनके कोई जज़्बात क्यों नहीँ
हम तुम आस पास मेरे , मगर हम साथ क्यों नही
कुछ तुम नज़दीक हमारे, कुछ दूर क्यों नहीँ
कुछ हम दूर है, कुछ तुम पास क्यों नहीं
हम भी फ़ालतू ही शायरी किया करते हैं
इनका क्या असर पड़े हश्र पर तुम्हारे
क्या मतलब इन लब्ज़ो का
व्यर्थ ही बखान किया करते है ये
इनके कोई जज़्बात क्यों नहीँ
हम तुम आस पास मेरे , मगर हम साथ क्यों नही
कुछ तुम नज़दीक हमारे, कुछ दूर क्यों नहीँ
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