वो नज़रे छुपाये नज़दीक से गुज़र जाया करते थे
जाने आज क्या हुआ की नज़रे मिलने लगी,
जाने क्यों आज बिन बोले गुफ्तगु होने लगी
कुछ बात बड़ी, कुछ मुलाकातें
कभी आँखों से होता था जो
आज लब्ज़ो का संचार होने लगा
नज़दीक से गुज़र जो जाती थी
आज उन से नजदीकी बढ़ने लगी
जिनसे आज तक कुछ छुपाया नही
उनसे चुप कर के उस शख्स से मिलने लगे
लगता था इश्क़ हुआ है,
मतलब पता नही इश्क़ का ,
मगर साथ होने का एहसास अच्छा लगने लगा
धीरे धीरे आवाज़ के मोहताज बन गए कान हमारे
अब तो ये भी बिन पूछे तरसने लगे आवाज़ को,
करीबी इतनी बड़ी,
इतने करीब हुए की अब रिश्ता पलटि खाया
जो न कहा कभी , लब्ज़ो ने उनसे वही कह डाला
झगड़ पड़े नैन हमारे, हम चुप के चुप ही रह गए
नज़रे फिर गुज़रने लगी नज़दीक से हमारे
मगर अब कुछ कहने सुन ने को न था
बस बिना मतलब ही फड़फड़ा रहे थे पन्ने रूह के
जैसे किसी खूबसूरत से तस्वीर में
मदहोशी में आकर रंग ज़्यादा भर दिया इतना,
इतना की सीरत बदल दी हो तस्वीर की
टिप टिप भी बरसे तो क्या है
नैन कभी जो देखा करते थे तुम्हे
उन्हें जीने का एक नया बहाना मिल गया
देखो अपने नए शौक से कैसे जी रहे है..
लगता नही तुम्हारी ज़रुरत पड़े अब इन्हें,
मगर फर भी
अब की है ख़ता तो चलो पचता भी लेते है
नज़रे हम भी तुम्हे देख कर
मुआफ़ी से झुका ही लेते है
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