शब्दों का मकान
Sunday, 21 January 2018
मेरा सच
मेरे सच को तुम इतना न झुटला देना
के किसी रोज़ ज्ञात हो सच अगर तुम्हे
तो तुम हमसे नज़रे न मिला सको
मान अगर जाओगे कभी बात को उस दिन
तो में तुम्हे मान जाऊंगा
या दम छुपाने फिर अपना
झूठ तुमने बना लिया
तो खैर मेरा भी क्या केहना
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