Friday, 27 January 2017

क्या हर्ज़ है

तुझे बस ख्वाबो में देखा है
आज हक़ीक़त में देख लू 
तो क्या हर्ज़ है

तेरी मोहब्बत बस बातो में सुनी है
इश्क़ इन बातों से करलूँ 
तो क्या हर्ज़ है

सपनो में तो मेने कई बार तेरी आँखे देखी है
आज इन नज़रो में झाँक लू 
तो क्या हर्ज़ है

ज़िन्दगी में एक बार तो सबको देखता हूँ
तुझे रोज़ रोज़ बार बार देख लू 
तो क्या हर्ज़ है



अब जब इतनी मोहब्बत तुझसे करता हूं 
तो बदले में थोड़ा प्यार मांग लू 
तो क्या हर्ज है

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